जयपुर। आराध्य देव गोविंददेवजी मंदिर के सत्संग भवन में शनिवार को मंदिर महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सानिध्य में नानी बाई रो मायरो कथा का शुभारंभ हुआ। प्रारंभ में गोविंद देव जी मंदिर के प्रबंधक मानस गोस्वामी ने राधा कृष्ण महाराज का दुपट्टा ओढ़ाकर अभिनंदन किया। प्रथम दिवस की कथा का शुभारंभ करते व्यासपीठ से राधा कृष्ण महाराज ने कहा कि हमें अपने मन को सदैव अच्छा रखना चाहिए। यदि मन अच्छा है तो दुनिया में वह कभी घाटे में नहीं रहेगा। भगवान भी ऐसे लोगों की चिंता करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें कड़वी बातें, तिरस्कार और अपमान के कारण मन छोटा नहीं करना चाहिए। कभी कभी कड़वी बातें भी राह दिखा जाती है। तिरस्कार भी फायदा पहुंचाता है।
नरसी भक्त के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भगवान ने संसार में रहते हुए ईश्वर को प्राप्त करने की प्रेरणा देने के लिए नरसी जी को दुनिया में भेजा । नरसी जी जूनागढ़ में एक प्रतिष्ठित सेठ थे, लेकिन वह भगवान के अनन्य उपासक थे । जो भी धन मिला वह दान कर दिया और स्वयं साधु-संतों के साथ भजन करते थे। नरसी जी की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनके नाते रिश्तेदारों ने उनसे किनारा कर लिया। लेकिन वह भगवान की भक्ति में लीन रहे। जब नरसी जी की बेटी नानी बाई की पुत्री विवाह योग्य हो गई और वहां से कुमकुम पत्रिका आई तो भी नरसी जी बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुए । उन्हें अपने ठाकुर जी पर पूर्ण विश्वास था। अंजार नगर से ब्राह्मण कुमकुम पत्रिका लेकर जूनागढ़ आए । नरसी जी ने उनका मान सम्मान किया । कुमकुम पत्रिका देखी तो सर्वप्रथम ठाकुर जी का नाम था और सबसे नीचे नरसी जी का । नरसी जी ने सोचा जिसका नाम सबसे ऊपर है वही मायरा भरेंगे उन्हें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक अन्य प्रसंग में उन्होंने कहा कि हमें कभी भी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए। जूठा छोड़कर लोग गरीब का अपमान करते है । यदि हम दूसरे लोगों को भोजन खिला नहीं सकते तो कम से कम जूठन तो नहीं छोड़नी चाहिए । उन्होंने कहा कि बुजुर्गों के पास बैठने से आयु , विद्या , यश और बल में वृद्धि होती है ।आयोजक प्रभु दयाल जाखोटिया एवं रामदास पटवारी ने बताया कि कथा 2 और 3 जून को अपराहन 1 से शाम 5 बजे तक होगी।
नरसी भक्त के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भगवान ने संसार में रहते हुए ईश्वर को प्राप्त करने की प्रेरणा देने के लिए नरसी जी को दुनिया में भेजा । नरसी जी जूनागढ़ में एक प्रतिष्ठित सेठ थे, लेकिन वह भगवान के अनन्य उपासक थे । जो भी धन मिला वह दान कर दिया और स्वयं साधु-संतों के साथ भजन करते थे। नरसी जी की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनके नाते रिश्तेदारों ने उनसे किनारा कर लिया। लेकिन वह भगवान की भक्ति में लीन रहे। जब नरसी जी की बेटी नानी बाई की पुत्री विवाह योग्य हो गई और वहां से कुमकुम पत्रिका आई तो भी नरसी जी बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुए । उन्हें अपने ठाकुर जी पर पूर्ण विश्वास था। अंजार नगर से ब्राह्मण कुमकुम पत्रिका लेकर जूनागढ़ आए । नरसी जी ने उनका मान सम्मान किया । कुमकुम पत्रिका देखी तो सर्वप्रथम ठाकुर जी का नाम था और सबसे नीचे नरसी जी का । नरसी जी ने सोचा जिसका नाम सबसे ऊपर है वही मायरा भरेंगे उन्हें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक अन्य प्रसंग में उन्होंने कहा कि हमें कभी भी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए। जूठा छोड़कर लोग गरीब का अपमान करते है । यदि हम दूसरे लोगों को भोजन खिला नहीं सकते तो कम से कम जूठन तो नहीं छोड़नी चाहिए । उन्होंने कहा कि बुजुर्गों के पास बैठने से आयु , विद्या , यश और बल में वृद्धि होती है ।आयोजक प्रभु दयाल जाखोटिया एवं रामदास पटवारी ने बताया कि कथा 2 और 3 जून को अपराहन 1 से शाम 5 बजे तक होगी।
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