अरूणा राय ने अलवर में मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा कि मोदी सरकार ने न केवल सूचना को बल्कि शिक्षा, चिकित्सा, महिला एवं मानवाधिकार आयोग को भी खत्म करने में कसर नहीं रखी। क्योंकि न्यायिक शक्ति प्राप्त ये आयोग सरकार के कामकाज पर निगरानी एवं नियंत्रण रखते हैं। वैसे भी जहां सूचना होती है, वहां शक्ति होती है। आयोगों की इस शक्ति को कमजोर किया गया।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में देश के लोग सूचना प्राप्ति के अधिकार से वंचित रहे। आंकड़े बताते है कि वर्ष 2017-18 में 14.5 लाख सूचना के अधिकार सम्बन्धी आवेदन बकाया पड़े रहे। उन्होंने कहा कि अफसोस की बात है कि 11 सूचना आयुक्त में सिर्फ तीन की नियुक्ति हुई और आठ के पद खाली पड़े है।
राय ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आन्दोलनों में भाग लेने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसे ही सत्ता में आई, सत्ताधीश ने लोकपाल तक की नियुक्ति नहीं की है। पांच वर्ष गुजर जाने के बाद उच्चतम न्यायालय के आदेश पर आचार संहिता लागू होने के बाद लोकपाल की नियुक्ति की गई। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने कॉर्पोरेट जगत को फायदा पहुंचाने के लिए अनेक कानूनों को कमजोर किया है। उन्होंने जन सरोकार द्वारा तैयार किए गए जनता के माँग पत्र की भी जानकारी दी।
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