महात्मा गांधी अस्पताल में विष्व अस्थमा दिवस मनाया
अस्थमा रोगी के षुरूआती लक्षण जैसे-खांसी आना, ष्वांस लेने मे परेषानी, छाती में भारीपन, ष्वांस में आवाज आना आदि होते है। जब मरीज देरी से अस्थमा एवं ष्वास रोग विषेषज्ञ के पास जाता है या इलाज में लापहरवाही करता है तो यह स्थिति रोगी के लिए अधिक गंभीर हो जाती है। साथ ही रोगी के ष्वांस में रूकावट बढ़ जाती है रोगी कि इस स्थिति को ’’अस्थमा अटैक’’ कहते है।
चिकित्सा विज्ञान के विकास की वजह से अस्थमा लाइलाज नहीं रहा है। डॉ़ मान ने बताया कि इसके लिए इन्हेलर के रूप में बहुत ही कारगर इलाज उपलब्ध है। हमारे भारतवर्ष के ग्रामीण क्षेत्रों में इन्हेलर के बारे मे बहुत सारी गलत धारणायें है। जिसके कारण मरीज इन प्रभावषाली दवाइयों को लेने से डरता है जबकि इन्हेलर के रूप में उपलब्ध दवाऐं सबसे ज्यादा असरदार होती है। इनके साइड इफेक्ट भी नहीं के बराबर होते हैं। इन्हेलर को डॉक्टर की सलाह के बिना षुरू और बंद नहीं करना चाहिए। अस्थमा के मरीज को लम्बा इलाज लेना पड़ता है तथा जॉच के बाद ही इसकी मात्रा को कम या ज्यादा किया जाता है। कई बार मौसम परिवर्तन के कारण अस्थमा के दौरे बढ़ जाते है। ये एलर्जी के कारकों को का वातावरण मे बढ़ जाने से होता है। इन एलर्जी के कारणो का स्किन प्रिक टेस्ट से पता लगाया जा सकता है।
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