जयपुर। प्रभा खेतान फाउण्डेशन द्वारा ग्रासरूट मीडिया फाउण्डेशन के सहयोग से राजस्थानी साहित्य, कला व संस्कृति से रूबरू कराने के उद्देश्य से ’आखर’ श्रृंखला में राजस्थानी भाषा के साहित्यकार बुलाकी शर्मा से उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर चर्चा की गई। उनके साथ संवाद डॉ. मेघना शर्मा ने किया।
श्री सीमेंट द्वारा समर्थित इस कार्यक्रम का आयोजन होटल आईटीसी राजपुताना में आयोजित हुआ।
बीकानेर में जन्में बुलाकी शर्मा ने असली और मुखौटा डायरी के अंश सुनाते हुये व्यंग्य के माध्यम से बताया कि लेखक और कलाकारों को स्वतंत्र रहना चाहिये और कहा कि केवल शाब्दिक व्यंग्य काफी नहीं है, व्यंग्यकार को हरिशंकर परसाई की तरह कर्म के माध्यम से भी व्यंग्य करना चाहिये। साप्ताहिक व्यंग्य स्तम्भ
‘उलटबांसी‘ का किस्सा सुनाते हुये उन्होंने कहा ‘बिना नाम के छपने से प्रंशसा ज्यादा होती है और नाम छपने से खिचाईं (बुराई) मिलती है।‘
इस अवसर पर बुलाकी शर्मा ने अपनी रचनाओं ‘आप घणंा ज्ञानी हो‘, ‘जबरो छल कर्यो बेमाता‘, ‘पंूगी‘, ‘उलटबांसी‘, ‘साब और साँप की राशि‘ के व्यंग्यों से श्रौताओं को मंत्रमुग्ध करके रखा। राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात पर उन्होने कहा कि ‘हिन्दी की मान्यता के लिए राजस्थानी भाषा ने त्याग किया था
और अब राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए आमजन को इससे जोड़ना होगा।‘
उन्होने आगे बताया कि, वैसे देखा जाये तो साहित्यिक स्तर पर राजस्थानी भाषा को पहचान मिली है लेकिन इस मुद्दे को लेकर जनमानस को जागरूक करना आवश्यक है ताकि उन्हें भी भागीदारी का अहसास हो और इसका भान हो कि किस प्रकार यह उनके गरिमा और आत्मसम्मान से जुड़ा विषय है।
श्री सीमेंट द्वारा समर्थित इस कार्यक्रम का आयोजन होटल आईटीसी राजपुताना में आयोजित हुआ।
बीकानेर में जन्में बुलाकी शर्मा ने असली और मुखौटा डायरी के अंश सुनाते हुये व्यंग्य के माध्यम से बताया कि लेखक और कलाकारों को स्वतंत्र रहना चाहिये और कहा कि केवल शाब्दिक व्यंग्य काफी नहीं है, व्यंग्यकार को हरिशंकर परसाई की तरह कर्म के माध्यम से भी व्यंग्य करना चाहिये। साप्ताहिक व्यंग्य स्तम्भ
‘उलटबांसी‘ का किस्सा सुनाते हुये उन्होंने कहा ‘बिना नाम के छपने से प्रंशसा ज्यादा होती है और नाम छपने से खिचाईं (बुराई) मिलती है।‘
इस अवसर पर बुलाकी शर्मा ने अपनी रचनाओं ‘आप घणंा ज्ञानी हो‘, ‘जबरो छल कर्यो बेमाता‘, ‘पंूगी‘, ‘उलटबांसी‘, ‘साब और साँप की राशि‘ के व्यंग्यों से श्रौताओं को मंत्रमुग्ध करके रखा। राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात पर उन्होने कहा कि ‘हिन्दी की मान्यता के लिए राजस्थानी भाषा ने त्याग किया था
और अब राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए आमजन को इससे जोड़ना होगा।‘
उन्होने आगे बताया कि, वैसे देखा जाये तो साहित्यिक स्तर पर राजस्थानी भाषा को पहचान मिली है लेकिन इस मुद्दे को लेकर जनमानस को जागरूक करना आवश्यक है ताकि उन्हें भी भागीदारी का अहसास हो और इसका भान हो कि किस प्रकार यह उनके गरिमा और आत्मसम्मान से जुड़ा विषय है।
No comments:
Post a comment