नाटक के जरिए किया गया सशक्त व आत्मनिर्भर महिलाओं के बदलाव का चित्रण
महमूद अली के निर्देशन व शैल जोशी के सह निर्देशन में प्रस्तुत इस नाटक में पाषाण युग का चित्रण कर स्त्री की शक्तियों को दर्शाया गया। इसमें बताया गया कि उस दौर में महिलाओं और पुरूषों के कबीले व गुफाएं अलग—अलग थे और औरतों के कबीले की सरदार भी एक औरत ही थी। वे इतनी मजबूत थीं कि अपना पेट भरने के लिए औरतें शिकार भी स्वयं करती थी।
इस नाटक के जरिए बताया गया कि एक मर्द किस प्रकार एक कबीले की सरदार स्त्री को उसकी कोमलता व सुदरता का अहसास कराकर उसे चारदीवारी में रहने को मजबूर कर देता है। यह उस मर्द की साजिश होती है, जिससे वह उसके कबीले पर शासन करने में कामयाब हो जाता है। देखते ही देखते मानव समाज में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह से बदल जाती है और वे शिकार व अन्य मुश्किल काम करने में अक्षम बन जाती हैं। हालांकि महिलाओं को बाद में अपनी इस स्थिति पर पछतावा भी होता है।
नाटक के कलाकारों में जसप्रीत कौर, मंजरी सक्सेना, सुनीता बर्मन, प्रतिष्ठा दत्त शर्मा, याशिका विजय, मोईन खान और गुंजन सैनी शामिल थे।
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